रविवार, 20 मार्च 2016

चाँद चढ्यो गिगनार

चाँद चढ्यो गिगनार किरप्या, ढल आई आधी रात पीव जी 
अब तो घरां पधार, मारुणी थारी बिलखे छे जी बिलखे छे 

हाथां मेहँदी राचणी कोई, नैणा काजल सारयो जी 
ले दिवलो चढ़गी चौबारे, मरुवन पलंग संवारयो जी 
बैठी मनड़ो गौरी का, आया नहीं भरतार 
मारुणी थारी बिलखे छे जी बिलखे छे

ज्यूँ ज्यूँ तेल बले दिवले में, धण बाती सरकावे जी 
नहीं आयो मद चखियो रसियो, दिवलो नाड़ हिलावे जी 
दिवले सूं झुँझलाय गौरी, दिवलो दियो बुझाय 
मारुणी थारी बिलखे छे जी बिलखे छे

सिसक सिसक कर गौरी रोवे, तकियों काळो करियो जी 
उगते सूरज रसियो आयो, हाथ पीठ पर धरियो जी 
कठे बिताई सारी रात थाने, उग आयो प्रभात 
मारुणी थारी बिलखे छे जी बिलखे छे

हाथ छिटक कर गौरी बोली, अब क्यों घरां पधारया जी 
सौतन के संग रात बिताई, कर कर कोढ़ सवाया जी 
कठे बिताई सारी रात थे तो कर दी नी परभात 
मारुणी थारी बिलखे छे जी बिलखे छे

ऊक चूक मत बोलो गौरी, मत ना देवो ताना जी 
साथीड़ां संग रात बिताई, खेल्या चोपड़ पासा जी,
बठे बिताई सारी रात म्हाने, उग आयो परभात 
गौरी मुस्काओ जी मुस्काओ जी 

चंदो गयो सिधार देखो, उग आयो परभात 
म्हारा अब आया भरतार, मनड़ो मुळके छे जी मुळके 





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